Friday, April 1, 2011

संतुष्ट

खजूर का पेड़
आंसू बहा रहा था
जोर से चिल्ला रहा था
फल देता हूँ ,बाकी पेड़ों से लंबा हूँ
पर घना नहीं हूँ
मेरी छाया में कोई नहीं बैठता
आंसूं की बूँदें
पास लगे अमरुद के पेड़ पर गिरी
अमरुद के पेड़ ने ऊपर देखा
खजूर की बात सुन कर बोला
मेरा दुःख तुम से ज्यादा है
मैं भी फल देता ,फिर भी पत्थर खाता
मेरे कच्चे फल भी तोड़े जाते
बच्चे मुझे परेशान करते
उनकी बात पेड़ पर चढी
चमेली की बेल सुन रही थी
वो भी सिसकियाँ ले कर कहने लगी
सुन्दर महकते फूल देती हूँ
फिर भी बिना सहारे के नहीं चढ़ सकती
नज़दीक सदा बहार का पौधा
तीनों की बात सुन कर
हँसते हँसते कहने लगा
मेरी भी सुन लो
पौधा मेरा कोई शौक से नहीं लगाता
ना मैं औरों सा महकता
मेरे बीज उड़ कर बगीचों में पहुँचते
जहां गिरते लग जाते
पौधा साल भर फूल देता रहता
निरंतर खुश रहता
अपने को खुश किस्मत समझता
सुन्दर बाग़,बगीचों में बसता
गुलाब,मोगरा,चमेली के संग रहता
निरंतर संतुष्ट रहता
इसी लिए सदा हंसता रहता
01-04--11
572—05-04-11

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