Friday, April 1, 2011

स्वछन्द उड़ना चाहता


खिड़की से झांकता
आकाश को निहारता
बादलों को देखता
निरंतर सोचता
मेरे घर 
बादल क्यूं ना आते ?
मुझे साथ क्यूं ना उड़ाते ?
मैं भी उडना चाहता
जहाँ को देखना चाहता
पानी प्यार का बरसाना
चाहता
रूखे सूखे दिलों को
प्यार से भरना चाहता
पहाड़ों की चोटियों को
छूना चाहता
ऊंचाई का अहसास पाना
चाहता
क्यों इंसान
ऊंचाई पर खुद को भूलता ?
जानना चाहता
हवाओं के साथ बहना चाहता
ज़र्रा ज़र्रा धरती का देखना
चाहता
सारी दुनिया को निरंतर
अपना बनाना चाहता
बादल बन जीना चाहता
स्वछन्द उड़ना चाहता
01-04--11
571—04-04-11

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