बेरहमी से
दिल से निकाला गया
उसकी मुस्काराहट से
भरमाता रहा
निरंतर नए ख्वाब
बुनता रहा
हकीकत से बेफिक्र
उसके नशे में मदहोश
जीता रहा
खुद के लिए मौत का
सामान
इकट्ठा करता रहा
होश आया तो अकेले
खडा था
दिल टूट कर कुछ
इस तरह बिखर गया
सिवाय मौत के
कोई चारा भी ना था
दफनाने के लिए
कोई कंधा देने वाला भी
बचा ना था
30-01-2012
88-88-01-12
1 comment:
दिल होता ही टूटने के लिये है,कितुं पुनः जुड़ता भी है...
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