दबे है
दिल में दर्द बहुत
खाए हैं ज़ख्म
अपनों से बहुत
जब भी मिलते
गले लग कर मिलते
फिर चुपके से वार
करते
खुश हैं की ज़िंदा हैं
अब तक हम
अब भी उनसे
हंस कर मिलते हैं हम
घबराते नहीं कब फिर
ज़ख्मों से नवाज़ंगे
पहले भी सहे हैं
फिर सह लेंगे हम
निरंतर हँसते रहेंगे
लाख कोशिश कर लें
रोयेंगे नहीं हम
17-01-2012
55-55-01-12
2 comments:
वाह बहुत खूब
सर ना झुकना
लड़ते जाना ...ये ही नियम है जिंदगी का
खूबसूरत रचना.....
लेकिन...
जिन्दगी में ये सब तो होता रहता है..किसी की वजह से हंसी न खोएं....
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