Friday, November 23, 2012

रात आँख लगी ही थी



रात आँख लगी ही थी कि
टिटहरी की आवाज़ ने
मुझे जगा दिया
खिड़की में टिटहरी को
बैठे देखा तो उससे
इतनी रात में इस तरह
टिटहराने का कारण
पूछ लिया
टिटहरी कहने लगी
खिड़की खुली रखने का
धन्यवाद दे रही थी
अपने
साथियों से बिछड़ गयी हूँ
नीड का रास्ता भूल गयी हूँ
कमरे की
खिड़की खुला ना होती,
तो रात भर भटकती रहती
उसकी बात ने मुझे
झंझोड़ दिया
मैं सोचने लगा
क्यों इंसान बड़े उपकार भी
भूल जाता है
अपने स्वार्थ में जीता है
857-41-23-11-2012
उपकार,धन्यवाद,स्वार्थ

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