Wednesday, November 28, 2012

मंजिल न पा सका



घर तो मिल गया
मगर घर का
दरवाज़ा नहीं मिला
उम्मीद में घर के
बाहर ही
वक़्त काटता रहा
आवाज़ तो सुन ली
मगर घूंघट से ढका
चेहरा नहीं दिखा
मंजिल के
पास हो कर भी
मंजिल न पा सका
866-50-28-11-2012
शायरी,उम्मीद, मंजिल

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