Friday, November 23, 2012

अधिक पाने की इच्छा में



सूरज को देखता हूँ
तो मन करता है
उसके जैसे ही चमकने लगूं
दुनिया को चकाचौंध कर दूं
सोचते सोचते रुक जाता हूँ
खुद से कहने लगता हूँ
सूरज सी गर्मी नहीं
चाहता हूँ
जो जीवों को झुलसा दे
पेड़ों को सुखा दे
बिन पानी
जीवन को दूभर बना दे
परमात्मा
मुझे चाँद ही बना दे
कम रोशनी से ही
संतुष्ट हो लूंगा
चाहे अमावस को छुप जाऊं
मगर पूनम को तो
चमकूंगा
मंद रोशनी से
दुनिया को भर दूंगा
दिलों में
ठंडक पैदा कर दूंगा
कम में संतुष्ट हो
जाऊंगा
पर अधिक पाने की
इच्छा में
दूसरों को तो नहीं
झुलसाऊंगा
855-39-23-11-2012
इच्छाएं,इच्छा,संतोष,संतुष्टी,संतुष्ट

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