Tuesday, November 6, 2012

शक और नफरत को दिल और ज़हन से निकाल दे


शक और नफरत को दिल और ज़हन से निकाल दे
दिल इस हद तक
शक और नफरत से
भर गया
आधी बात सुन कर ही
मतलब निकालने लगा
जिसका वजूद ही नहीं
उसकी मूरत बनाने लगा
तुम किसी से हंस कर
बात कर रहे थे
बार बार मेरी तरफ 
देख रहे थे
मैंने समझा तुम मेरी ही
बात कर रहे हो
आग बबूला हो कर
गंदे लफ़्ज़ों से तुम्हारा
इस्तकबाल किया
बाद में पता चला
तुम किसी और बात पर
हंस रहे थे
अब सोचता हूँ खामखाँ
जुबां को गंदा किया
दिमागी दिवालियापन का
सबूत दिया
अब खुदा से दुआ करता हूँ
लाइलाज हो जाए उससे पहले
इस बीमारी का इलाज़ कर दे
गिरे हुए ख्यालों को
अब और ना गिरने दे
मुझे इंसानियत की राह से
मत भटकने दे
शक और नफरत को
 दिल और ज़हन से निकाल दे
824-08-06-11-2012
शक.नफरत,इंसानियत

No comments: