Tuesday, November 6, 2012

उड़ता जो भी परिंदा आसमान में


उड़ता जो भी परिंदा आसमान में
उड़ता जो भी परिंदा
आसमान में
ज़मीन पर आता  ज़रूर
क्यूं भूल जाता है इंसान मगर
छूता  ऊँचाइयाँ जब भी
दिमाग भी
ऊंचाइयों पर रख देता
अहम् से भर जाता
देखता भी नहीं नीचे के
लोगों को कभी
भूल जाता  अपनों को भी
गले से लगता उनको ही
जो भी मुस्काराता साथ में
करता  झूठी तारीफ़ उसकी
भ्रम की दुनिया में खो जाता
भूल जाता
रहता नहीं समय किसी का
इकसार कभी
इतना भी याद नहीं रखता
जब भी आयेगा ज़मीन पर
मिलेगा नहीं कोई बात
करने वाला भी कभी
829-13-06-11-2012
जीवन,परिंदा,अहम्

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