Wednesday, November 28, 2012

अगर मैं चाहूँ रात सवेरे ही आ जाए



अगर मैं चाहूँ
रात सवेरे ही आ जाए
सवेरा रात को हो जाए
चाँद सूरज  सा
सूरज चाँद सा चमकने लगे
मनुष्य घोंसलों में
पक्षी घरों में रहने लगे
तो तुम कहोगे संभव नहीं
तो फिर सदकर्म के बिना
मन में इर्ष्या,द्वेष,
रख कर
चरित्रहीन बन कर
कुत्सित विचार रख कर
इश्वर कैसे मिलेगा
चाहे मंदिर जाओ
या मस्जिद जाओ
रामायण पाठ करो या
क़ुरान पढो
काशी जाओ या
काबा जाओ
ना इश्वर मिलेगा
ना अल्ला मिलेगा
स्वर्ग की चाह में
नर्क अवश्य मिलेगा
873-57-28-11-2012
इश्वर,सद्कर्म,इर्ष्या,द्वेष,जीवन

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