Tuesday, November 6, 2012

सांझ ढलने लगी है


सांझ ढलने लगी  है
सांझ ढलने लगी  है
चेहरे पर
उदासी छाने लगी  है
रात आने वाली है
विरह की
अग्नि जलने वाली है
उसकी याद आज फिर
सताने वाली है
रोज़ की तरह आँखों की
नींद उड़ने वाली है
ह्रदय की प्यास
अतृप्त रहने वाली है
ह्रदय की तड़प
मन की
पीड़ा बढ़ने वाली है
वह नहीं आयेगी
जब तक
हर दिन हर रात
वही कहानी दोहराई
जाने वाली है
चैन की बली चढ़ने
वाली है
831-15-06-11-2012
प्यार,विरह,मोहब्बत,प्रेम

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