Sunday, November 11, 2012

या खुदा क्यूं इतना ज़ुल्म ढाते हो



या खुदा
क्यूं इतना ज़ुल्म ढाते हो
तन्हाइयों में भी
तनहा नहीं रहने देते हो
टूटे हुए दिल को तोड़ते हो
ख्यालों में
ज़लज़ला मचाते हो
यादों को
ज़हन से ना जाने देते हो
गर इतना यकीन
तुम्हें अपने वजूद पर
तो मिला दो उससे
नहीं तो यादों से उसका
नाम-ओ-निशाँ ही मिटा दो
मुझे तन्हाई में तो
सुकून पाने दो
837-21-11-11-2012
यादें,तनहा,तन्हाइयां, सुकून

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