Tuesday, November 6, 2012

इंसान बन कर जीना सिखा दे सब को


इंसान बन कर  जीना सिखा दे सब को
हर आदमी
आसमान छूना चाहता
मीनारों से भी
बड़ा बनना चाहता
नीव का पत्थर कोई
नहीं बनना चाहता
धरती पर रह कर भी
इंसान बन कर नहीं
जीना चाहता
स्वर्ग की तलाश में रहता
बिना त्याग तपस्या
खुद को पुजवाना चाहता
गुलाब मोगरे की सुगंध चाहता
पर खुद दुर्गन्ध फैलाता
वृक्ष की छाया लेना चाहता
देने में कंजूसी करता
परमात्मा कुछ दे ना दे
इंसान को
बस सद्बुद्धि दे दे सबको
बरगद सा ह्रदय,
गुलाब की महक
से भर दे हर जीवन को
इंसान बन कर
जीना सिखा दे सब को
824-08-06-11-2012
अहम्,अहंकार,इच्छाएं,जीवन,संतुष्टी,परमात्मा

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