Tuesday, November 20, 2012

सब करते हैं इसलिए मैं भी करता रहा हूँ



स्वयं को पढ़ा लिखा
विद्वान समझता हूँ
पर आज तक समझ
नहीं पाया
क्यों मूर्तियों की पूजा
करता हूँ
सब करते हैं इसलिए
मैं भी करता रहा हूँ
करता रहूँगा
उचित अनुचित का
प्रश्न नहीं उठाऊंगा
भीड़ के साथ चलता रहा हूँ
चलता रहूँगा
अलग चलने का प्रयत्न
करूंगा
तो पत्थर खाऊंगा
848-32-20-11-2012
मूर्ती पूजा,धर्म,जीवन,भेड़ चाल,भीड़ 

No comments: