Tuesday, November 6, 2012

अहम् के विस्तार में रिश्ते कहीं खो गए


अहम् के विस्तार में रिश्ते कहीं खो गए
अहम् के विस्तार में
रिश्ते कहीं खो गए
हम और हमारे
नेपथ्य में रह गए
मैं और मेरा
अब गौण हो गए
इंसान हाड मास के
पुतले रह गए
अकेले जीना
मजबूरी हो गया
साथ के नाम पर
अकेलापन रह गया
825-09-06-11-2012
अहम्,अहंकार,संतुष्टी,अकेलापन ,रिश्ते

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