Tuesday, November 6, 2012

किसने देखा है ब्रह्माण्ड-किसने देखा है सोच का संसार


किसने देखा है ब्रह्माण्ड-किसने देखा है सोच का संसार
किसने देखा है ब्रह्माण्ड
किसने देखा है सोच का संसार
किसने देखा हैं मन का विस्तार
कोई सीमा नहीं कोई अंत नहीं
सब व्यर्थ में
उल्कापिंडों से घूमते रहते हैं
इच्छाओं की दुनिया
गोते लगाते हैं
आधारहीन तथ्यों से
खुद को संतुष्ट करना चाहते हैं   
एक दिन उल्कापिंडों जैसे ही
लुप्त हो जायेंगे
क्यों नहीं जिसने भेजा है
संसार में
उस पर ही सब छोड़ दो
उसकी इच्छा अनुरूप
जीवन जी लो
जो होना है हो जाएगा
ना कोई रोक सका है होनी को
ना ही कोई रोक पायेगा
826-10-06-11-2012
मन ,सोच,इच्छा ,जीवन

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