Tuesday, November 6, 2012

अब भी कुछ युवा संस्कारों में जीते हैं(काव्यात्मक लघु कथा )



बूढ़े बाबा ने दरवाजा खोला
मुझे देखते ही कहने लगे
बेटा तो घर पर नहीं है
किससे मिलना है
मैं बोला बाबा आपसे
बाबा चौंक कर कहने लगे
बेटा सांस लेना पेट
भरना भी दूसरों पर निर्भर है
तो मुझसे मिलने कोई
क्यों आयेगा
किसी को मुझसे कोई काम नहीं
तो फिर मेरी परवाह
क्यों करेगा
वैसे भी आजकल
बिना काम कोई किसी से
नहीं मिलना चाहता
बिना काम मिलना
समय व्यर्थ करने जैसा लगता
तुम अपवाद लगते हो
ज़माने की
चाल नहीं चलते हो
मैं बोला
बाबा इस ज़माने में भी
सारे युवा
पथ से भटके हुए नहीं हैं
अब भी कुछ
युवा संस्कारों में जीते हैं
बच्चे से बूढों तक
सब का ध्यान रखते हैं
823-07-06-11-2012
बुढापा,युवा,संस्कार,पीढी अंतराल

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