Friday, August 12, 2011

निरंतर उम्मीद में जीता हूँ मैं

सूरत अपनी

देखते थे

जिस शीशे में वो

उस शीशे को रोज़

गौर से देखता हूँ मैं

अक्स गर छुपा हो

उनका कहीं उसमें

ढूंढता हूँ मैं

उसे देख कर ही

सुकून मिल जाएगा

ख्याल जहन में

रखता हूँ मैं

निरंतर उम्मीद में

जीता हूँ मैं

12-08-2011

1348-70-08-11

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