Tuesday, August 9, 2011

मुझे बचपन याद रहा ,वो ओहदे में भूल गया था

मन निरंतर उससे

मिलने का करता

बार बार पैगाम

भिजवाता

बहुत मिन्नतों के बाद

उसे ख्याल मेरा आता

वक़्त एक दो लम्हों का

दिया जाता

चेहरा भी ठीक से

देख ना पाता

मन भरता नहीं

उससे पहले

जाने के लिए कह

दिया जाता

निरंतर इसी तरह

दुत्कारा जाता

मैं भी क्या करता ?

चैन उसी से मिलता

बचपन का दोस्त था मेरा

दांत कटी रोटी का

साथ था

मेरे बगैर एक पल भी

ना रहता था

बहुत बड़ा अफसर था

मुझे बचपन याद रहा

वो ओहदे में भूल

गया था

घमंड में चूर हो

गया था

09-08-2011

1324-46-08-11

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