क्या दिया
ज़िन्दगी ने
मुझको
खुद से पूछता हूँ
अतीत को
टटोलता हूँ
कभी हंसता हूँ
कभी रोता हूँ
निरंतर सोच में
पड़ता हूँ
जो करना नहीं
चाहिए था
उसका कैसे
सुधार करूँ ?
भविष्य को
चैन से भर दूं
या बचा समय
ऐसे ही काट लूं ?
क्या खुद को
माफ़ कर पाऊंगा ?
क्या चैन से
मर पाऊंगा ?
उत्तर मिलता नहीं
क्या इसे कर्मों की
सज़ा समझूँ ?
आगे दिल
किसी का
ना दुखाऊँ
वो रास्ता
समझूँ ?
17-08-2011
1370-92-08-11
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