भटक रहा था
चौराहे पर खडा था
किधर जाऊं?
समझ नहीं पा रहा था
उम्मीद की
गर्मी में झुलस रहा था
महक भरी ठंडी हवा का
झोंका आया
जलन को कम किया
बरसों से
निरंतर तरस रहा
जिसके खातिर
आज वो मंजर दिखाया
अरमानों को फिर से
जगाया
मंजिल तक पहुँचने का
रास्ता नज़र आया
26-08-2011
1395-117-08-11
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