कैसा प्रजातंत्र है ?
जहाँ नेता भ्रष्ट हैं
अपने में मस्त हैं
प्रजा त्रस्त हैं
चिंताओं से ग्रस्त हैं
भ्रष्टाचार से पस्त है
ना विरोध कर सकूँ
ना खुल कर रो सकूँ
निरंतर
ज़ुल्म सहता रहूँ
मर मर कर जीता रहूँ
खुद से पूछता हूँ
कब तक चुप रहूँ ?
गांधी के देश में
घुट घुट कर जीता रहूँ
आत्म सम्मान की
बली देता रहूँ
या उठ खडा हो जाऊँ
ज़ुल्म का बदला लूँ
व्यवस्था बदलने की
लड़ायी में अपनी
आहुती दूँ
16-08-2011
1365-87-08-11
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