इंसान रो कर
आंसू तो बहा सकता
किसी कंधे का सहारा
ले सकता
व्यथा अपनी व्यक्त
कर सकता
सहानभूती के दो शब्द
पा सकता
गम हल्का कर सकता
उन मछलियों से पूंछो
गम में वो भी
तड़पती होंगी
दर्द में रोती होंगी
आंसूं भी बहाती होंगी
व्यथा उनकी किसको
दिखती नहीं
आँसू भी पानी में
घुल मिल जाते
ना सहारा ,
ना सहानभूती
किसी की
ना शिकवा ना
शिकायत किसी की
चुपचाप सहती रहती
निरंतर जीवन जीती
अरे इंसानों
मछलियों से सीख लो
हर छोटी बात पर
चीखा चिल्लाया ना करो
कभी सब्र से भी काम
लिया करो
10-08-2011
1327-49-08-11
(खलील जिब्रान के लेख से प्रेरित)
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