नज़र नहीं आया
पता नहीं क्यों
तुमने इतना तरसाया
दिन भर इंतज़ार
करता रहा
ज़रा सी आहट पर
दरवाज़े तक
दौड़ लगाता रहा
गली के
आखिरी छोर तक
व्याकुल निगाहों से
ढूंढता रहा
निरंतर बेचैनी में
सोचता रहा
तुम्हारी खैरियत की
दुआ करता रहा
कल नज़र आओगे
उम्मीद करता रहा
27-08-2011
11405-127-08-11
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