धीरे धीरे
आगे बढ़ रहे हैं
अपनी,अपनी
समस्याओं का बोझ
उठाये
कुछ चुपचाप सह रहे हैं
कुछ चिल्ला चिल्ला
कर कह रहे
किसी को पता नहीं
कहाँ जाना है
फिर भी चले जा रहे हैं
थक गए हैं
पर खुद को तरो ताज़ा
बता रहे हैं
अपनी तन्हाईयों में
जी रहे हैं
निरंतर आशाओं में
निराशा का उत्तर
ढूंढ रहे हैं
05-08-2011
1307-29-08-11
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