नर्म नहीं रहे
दो रोटी के लिए
मिट्टी से सन गए
जीने की मजबूरी में
खुरदरे हो गए
खुद के वज़न से
ज्यादा बोझ
उठाने लगे
खेलने की उम्र में
निरंतर कर्म में
जुट गए
सर्दी,गर्मी सब
भूल गए
वक़्त से पहले ही
जीवन की
कडवी सच्चाई से
मुखातिब हो गए
हम खड़े देखते रहे
सवालों में उलझे रहे
13-08-2011
1352-74-08-11
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