304—02-11
इंतज़ार
हमेशा किया अब भी
करता हूँ
अब भी उम्मीद में
अब भी उम्मीद में
जीता हूँ
निरंतर मिलने को दिल
निरंतर मिलने को दिल
चाहता
बात मन की
बात मन की
सुनने,सुनाने का करता
ज़न्नत नशीं जब से हुए
यादों का सैलाब
ज़न्नत नशीं जब से हुए
यादों का सैलाब
विरासत में दे गए
अकेले ज़माने से
अकेले ज़माने से
लड़ने को छोड़ गए
गम नहीं
गम नहीं
अकेले सब सहने का
वक़्त अकेले काटने का
वो कंधा कहाँ से लाऊंगा
सर रख कर जिस पर
वक़्त अकेले काटने का
वो कंधा कहाँ से लाऊंगा
सर रख कर जिस पर
रो सकूं
हाल-ऐ;दिल बयान
हाल-ऐ;दिल बयान
कर सकूं
दिल को सुकून
दिल को सुकून
दे सकूं
22-02-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
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