251—02-11
एक थी हीर,
एक था रांझा
एक पतंग दूसरा मांझा
बिना एक के दूजा अधूरा
निरंतर इंतज़ार दूसरे का
रहता
अब नज़ारा बदल गया
पतंग कट गयी,
रास्ता भटक गयी,
हवा में उड़ गयी
किसी और की हो गयी
निरंतर
हवा में लहराने वाला
मांझा उलझ गया
अपने में सिमट गया
खुद से कहने लगा
अब कभी
पतंग नहीं उडाएगा
पतंग नहीं उडाएगा
कभी पेच नहीं लडाएगा
क्या पता
फिर कोई पतंग
फिर कोई पतंग
काट ले जायेगा
14-02-2011
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