305—02-11
इक
नज्म मैंने सुनायी
उन्हें
बहुत पसंद आयी
तोहफे में
इक फूल मुझे भेजा
प्यार का
पैगाम मैंने समझा
निरंतर
चौराहे पर खडा होने लगा
इंतज़ार उनका करने लगा
धीरे धीरे सब्र खोने लगा
दिल
टूट गया जब पता चला
हर
नज़्म गाने वाले को
वो फूल भेजते थे
बीमार-ऐ-इश्क
उसे पैगाम-ऐ-मोहब्बत
समझते
मुझ से पहले भी
दिल बहुतों के टूटे
22-02-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
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