Ankleshwar
325—02-11
तुम
मुझे बगीचे में मिले
हम तुम अकेले
फिर भी कुछ ना बोले
ना ठहरे,ना रुके
मुस्कराकर निकल गए
देख कर अनदेखा कर गए
बहुत जल्दी से चले गए
नज़र से नज़र भी ना मिलायी
बात दिल की भी ना सुनायी
ना पैगाम कोई दिया मुझे
ना जुबान से लब्ज प्यार के बोले
क्या किसी और के हो गए
या कुछ और सोच रहे थे
निरंतर तडपाते हो
कभी चुप रहते
कभी मुस्कराकर निकल जाते
देख कर अनदेखा करते
ना जाने क्यूं ऐसा करते हो
बिन मारे ही मारते हो
27-02-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
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