301—02-11
जब चाहे मुंह फिरा लेते हैं लोग
फितरत अपनी दिखाते हैं लोग
हँसते हँसते गाली देते हैं लोग
ख्यालों में खंजर रखते हैं लोग
अपनों से नज़रें चुराते हैं लोग
रोज़ नया ख्वाब देखते हैं लोग
प्यार को खेल समझते हैं लोग
दिल तोड़ कर खुश होते हैं लोग
मुस्कारा कर गम छुपाते हैं लोग
अन्दर ही अन्दर रोते हैं लोग
बात दिल की छुपाते हैं लोग
निरंतर नादानी करते हैं लोग
खुद को बेहतर समझते हैं लोग
खुदा को भी धोखा देते हैं लोग
21-02-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
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