Ankleshwar
322—02-11
तुम खफा हुयी
यूँ लगा फूल से खुशबू
बिदा हुयी
वक़्त से पहले ही क़ज़ा
आ गयी
किश्ती मंझ धार में
डूब गयी
क्या खता की हमने
जो तुम इतनी नाराज़ हुयी
बात करना तो दूर
नाम से भी नफरत
हो गयी
ये ना भूलना
लहरें लौट कर फिर
किनारे से टकराती
हवा भी चलते चलते
रुक जाती
किश्ती बिना पतवार के
इधर उधर भटकती
मांझी बिना किनारे
तक नहीं पहुँचती
26-02-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
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