314—02-11
ना कोई आम होता
ना कोई ख़ास होता
आज अर्श पर तो
कल फर्श पर होगा
आज रंक कल राजा
होगा
कौन जानता कल
क्या होगा
क्यूं फिर इंसान
बहकता
अर्श पर घमंड से
चूर होता
निरंतर बुलंदी पर
कोई ना रहता
हर इंसान का वक़्त
बदलता
खेल किस्मत का
चलता रहता
24-02-2011
अर्श =आसमान
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
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