315—02-11
ना मैं आशिक
ना तुम माशूक
हिस्सा जिस्म का हो
रूह में बसते हो
निरंतर साथ होते हो
ना दिखते हो
ना बोलते हो
फिर भी सब समझते हो
क्या कहता हूँ,सुनते हो
जो सोचता हूँ,जानते हो
ना मिलते,फिर भी
ज़ज्ब मुझ में हो
तुम सागर,मैं तल उसका
मैं भाप, तुम पानी हो
तुम किश्ती मैं मांझी
उसका
तुम आकाश,मैं चाँद उसका
तुम मैं हो ,मैं तुम हूँ
24-02-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
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