310—02-11
ना हम
खफा थे,ना वो खफा थे
ज़माने की नज़रों के
मारे थे
साथ हँसते थे ,साथ
गाते थे
ज़माने को बर्दाश्त
ना थे
दिलों में उनके तीर
चलते
तमन्ना
जुदा करने की रखते
अब कामयाब हो गए
ऐसा समझते
कहाँ जानते
दिल के रिश्ते कभी
ना टूटते
दूर कितना भी रहे
बरकरार रहते
इक दूसरे से
ख़्वाबों में मिलते
निरंतर ख्यालों
में रहते
ज़मीन पर नहीं तो
ज़न्नत में मिलते
22-02-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
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