278—02-11
छोटे से
मंदिर का पुजारी था
प्रार्थना इश्वर से करता
मंदिर की ख्याती बढ़ा दे
चारो दिशाओं में फैला दे
भक्तों से मंदिर भर दे
मनोकामना
उनकी पूरी कर दे
चढ़ावा खूब चढ़ेगा
उस का भी भला होगा
मंदिर के साथ
उसका भी नाम होगा
पूजा का प्रसाद
उसे भी मिलेगा
प्रार्थना करते करते
बुढापा आया
इश्वर टस से मस
ना हुआ
मंदिर ज्यों का त्यों रहा
पुजारी निरंतर भूलता रहा
इश्वर को भक्तों की नहीं
भक्तों को इश्वर की
आवश्यकता होती
सत्य ईमान कर्म और
खुद पर विश्वाश से
बिना मांगे
मनोकामना पूरी होती
स्वार्थ की सदा दुर्गती
होती
19-02-2011
1 comment:
शायद नीयत में खोट था; दूसरों की भलाई की आड़ में अपनी स्वार्थ सिद्धी की इच्छा थी.
खुलकर साफ़ दिल से अपनी ज़रूरत सामने रखकर माँगता तो मिला जाता.
दाता तो देने ही में प्रसन्न होता है लेकिन दोगलेपन और धोखे से नफ़रत करता है.
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