270—02-11
सितारे
चाँद को ढूंढ रहे
पता मुझ से पूंछ रहे
में खुद अँधेरे में
पता मुझ से पूंछ रहे
में खुद अँधेरे में
भटक रहा
उजाले को ढूंढ रहा
क्या जवाब दूं
कैसे बताऊँ में भी
उजाले को ढूंढ रहा
क्या जवाब दूं
कैसे बताऊँ में भी
चाँद के दीदार को
तरस रहा
इंतज़ार में निरंतर
इंतज़ार में निरंतर
रो रहा
बेचैन निगाहों से उसे
बेचैन निगाहों से उसे
खोज रहा
या तो वो खफा मुझ से
या खफा ज़माने से
छुप के बैठे हैं
या तो वो खफा मुझ से
या खफा ज़माने से
छुप के बैठे हैं
हर निगाह से
17-02-2011
No comments:
Post a Comment