244—01-11
सागर में
चाँद का अक्स
तेरे कानों के झुमके
सा लगता
पानी के साथ वो भी
हिलता
चेहरा तेरा किसी परी
सा दिखता
मुस्कान से अहसास
खिले फूल का होता
चेहरा कलाकार का
हूनर बताता
अंदाज़ दिल सबका
लुभाता
हंसना किसी साज़ का
सुर लगता
आवाज़ से समाँ
संगीत का बनता
निरंतर हर रूप में
खुदा दिखता
हर रूप सामने तेरे
शर्मिन्दा होता
हर कद्र दान
दिल तुझको देता
ख़्वाबों में सिर्फ तुझे
देखता
ख्यालों में सिर्फ
तुझे रखता
10-02-2011
1 comment:
बेहतरीन तुलना। वाह डाक्टर साहब आपने तो कमाल का लिखा है।
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