ठहराव की खोज में
जीवन भर चलता रहा हूँ
ठहराव तो मिला नहीं
निरंतर उलझता रहा हूँ
जीवन की पहेलियों को
सुलझाते सुलझाते
थकने लगा हूँ
अब समझ आने लगा
जब मिला नहीं ठहराव
कभी किसी को
मुझे कैसे मिल जाएगा
लगता है जीवन भर
भ्रम में फंसता रहा हूँ
व्यर्थ में डरता रहा हूँ
मरीचिका की चाह में
पथ से भटकता रहा हूँ
936-55-15-12-2012
जीवन,मरीचिका
,स्थायित्व ,ठहराव
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