मैं तुमसे कुछ कहना
चाहता हूँ
पर कहते हुए डरता हूँ
कहते कहते रुक जाता हूँ
मन की इच्छाओं को
अपने भीतर समेट लेता हूँ
कैसे कहूँ के चक्रव्यूह में
उलझ जाता हूँ
या तो मुझे तुम पर
या मुझे खुद पर विश्वास नहीं
मैं तुम्हें,तुम मुझे ठीक से
समझ नहीं पाए
तुम भी प्रयत्न करो
मैं भी प्रयत्न करूंगा
पहले रिश्तों को सुद्रढ़ बनाएं
शक को रिश्तों से दूर हटायें
फिर तुम मुझे मैं तुम्हें
मन की बात कह पाऊंगा
ना डरूंगा ना घबराऊंगा
955-74-15-12-2012
जीवन,विश्वास,अविश्वास
,उलझन,रिश्ते
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