Friday, December 7, 2012

यादें मानती ही नहीं



मेरी पसंदीदा किताबें
अलमारी में बंद हैं
यादें दिल की
अलमारी में ज़ज्ब हैं
मन करता है
तब अलमारी खोल कर
पसंद की किताब के
कुछ प्रश्ठ पढ़ लेता हूँ
किताब को वापस
अलमारी में रख देता हूँ
मन की अलमारी से
यादें निकालने की
ज़रुरत ही नहीं पड़ती
हर दिन बिना निकाले भी
दिल से बाहर निकल
पड़ती हैं
मुझे हैरान नहीं करे
इसलिए उन्हें दिल की
अलमारी में बंद करने की
कोशिश में लगा रहता हूँ
पर यादें
मानती ही नहीं
बार बार लौट आती हैं 
जितना उनसे
दूर होना चाहता हूँ
उतना ही वो
मुझे हैरान करती हैं
903-21-07-12-2012
यादें

No comments: