मेरी पसंदीदा
किताबें
अलमारी में
बंद हैं
यादें दिल की
अलमारी में
ज़ज्ब हैं
मन करता है
तब अलमारी खोल
कर
पसंद की किताब
के
कुछ प्रश्ठ
पढ़ लेता हूँ
किताब को वापस
अलमारी में
रख देता हूँ
मन की अलमारी
से
यादें निकालने
की
ज़रुरत ही नहीं
पड़ती
हर दिन बिना
निकाले भी
दिल से बाहर
निकल
पड़ती हैं
मुझे हैरान
नहीं करे
इसलिए उन्हें
दिल की
अलमारी में
बंद करने की
कोशिश में लगा
रहता हूँ
पर यादें
मानती ही नहीं
बार बार लौट
आती हैं
जितना उनसे
दूर होना चाहता
हूँ
उतना ही वो
मुझे हैरान
करती हैं
903-21-07-12-2012
यादें
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