सुबह बड़ी शिद्दत से
सजता संवारता हूँ
शाम तक बासी फूल सा
मुरझा जाता हूँ
मगर उसका दीदार नहीं होता
बनने संवारने में ज़िन्दगी
गुजारता हूँ
पर उम्मीद का दामन नहीं
छोड़ता हूँ
आईने को रोज़ तसल्ली देता हूँ
सब्र रखने की ताकीद करता हूँ
एक दिन मेरे चेहरे के साथ
एक खूबसूरत चेहरा भी
दिखाऊंगा
जब तक तो मुझे ही बर्दाश्त
करना पडेगा
आइना खामोशी से
मुझे सजने संवारने देता है
वो भी मेरी मजबूरी
समझता है
951-70-15-12-2012
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