चाहता हूँ
दो कदम चलूँ
मंजिल मिल जाए
मैं मुस्कराऊँ भर
लोग गले से लग जाएँ
मैं हकीकत से दूर रहूँ
जो भी चाहूँ वैसा हो जाए
ये ख्वाहिश तो हर
इन्सान की
पर खुदा की बतायी
राह पर तो चलो
कभी ये भी तो याद
आ जाए
945-64-15-12-2012
शायरी, ख्वाहिश,
हकीकत, खुदा,इश्वर,
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