हमने आज़ाद हो कर
क्या देखा
देखा जो खवाबों में भी
नहीं सोचा
रिश्तों को
तार तार होते देखा
बेटे को बाप को
गाली देते देखा
माँ बहन को सरे बाज़ार
ज़लील होते देखा
कमज़ोर को ताकतवर से
मार खाते देखा
गरीब को
और गरीब होते देखा
किसानों को
आत्मह्त्या करते देखा
बेईमानों को
मालामाल होते देखा
राज़ करने वालों को
ऐशों आराम करते देखा
अब आम आदमी को
आम आदमी के लिए
राज करने के सिवाय
कुछ देखने की इच्छा
बाकी नहीं है
949-68-15-12-2012
स्वाधीनता,आजादी,आज़ाद,देश
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