ज़िन्दगी भर
मंजिल की तलाश में
निरंतर
बिना रुके चलता रहा
पर इच्छाएं मुझसे भी
आगे चलती रही
मंजिल भी हर दिन
बदलती रही
ना इच्छाएं रुकी
ना मंजिल मिली
दोनों की कशमकश में
ज़िन्दगी ज़रूर
उलझ कर रह गयी
968-87-19-12-2012
ज़िन्दगी,कशमकश
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