सब कुछ समझ कर भी
नासमझ बनता रहा
सच को झूठ
झूठ को सच कहता रहा
रिश्तों को निभाने के खातिर
दुश्मनों को दोस्त कहता रहा
काले चेहरों को
पहचान कर भी सफेद
कहता रहा
खुद को ही धोखा देता रहा
964-83-15-12-2012
रिश्ते,ज़िन्दगी
,दुश्मन,दोस्त,समझ,नासमझ,
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