अब थक गया हूँ
इमानदारी सच्चाई,
इंसानियत को ढूंढते ढूंढते
ह्रदय अतृप्त
मन व्यथित होने लगा
क्यों नहीं समझ पाता हूँ
दे दी लोगों ने जान
जिसको पाने के लिए
जो मिला नहीं
सदियों से किसी को
मुझे कैसे मिल जाएगा
खुद से पूछता हूँ
क्या तलाश बंद कर दूं
खुद ही उत्तर देता हूँ
लोग सपने भी तो देखते हैं
कुछ पूरे होते
कुछ अधूरे रह जाते
तो भी जीना तो नहीं छोड़ते
क्यों ना सपना समझ
तलाश जारी रखूँ
मिल जायेगी तो खुश
हो लूंगा
नहीं मिलेगी तो अधूरा
सपना समझ भूल जाऊंगा
हँसते हुए जीना नहीं
छोडूंगा
962-81-15-12-2012
इंसानियत,अतृप्त,सपना,तलाश,
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