जब चुपके से बुढापा आया
तो बढ़ती उम्र से घबरा गया
मन की व्यथा छुपा ना सका
एक दिन उम्र से ही पूछ लिया
क्यों इतनी तेज़ी से बढ़ती हो
तारीख बदलती है
ज़िन्दगी एक दिन कम
हो जाती है
तुम एक दिन बढ़ जाती हो
थोड़ा सा धीरे नहीं चल
सकती हो
जितना एक दिन में बढ़ती हो
उतना पांच सात दिन में
नहीं बढ़ सकती हो ?
उम्र मुस्काराते हुए बोली
जीवन भर आवश्यकता से
अधिक तेज़ चलते रहे
धन कमाने की होड़ में
सेहत को भूलते रहे
अब जब संसार से
विदा होने की बेला
समीप आने लगी
तो डरने लगे हो
तुम तो मौक़ा खो चुके
फिर भी सेहत का जितना
ध्यान रख सकते हो रख लो
मगर अपने छोटों को तो
अच्छी सेहत के लाभ
जो भूल तुमने करी
उन्हें तो उससे बचा लो
तुम्हारी उम्र बढे ना बढे
उनकी तो बढ़ा दो
933-52-12-12-2012
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