कभी कभी मैं भी
हैवान बन जाता हूँ
लोगों के तीरों का
जवाब
तीरों से दे देता हूँ
बेसब्री की गर्मी से
खुद
मन के गुलशन को
झुलसा देता हूँ
उनसे ज्यादा ज़ख्म
खुद को देता हूँ
जिन्हें आदत है
नफरत से जीने की
उनके जाल में फंस
जाता हूँ
कभी कभी मैं भी
हैवान बन जाता हूँ
935-54-15-12-2012
बेसब्री,नफरत,क्रोध,जीवन
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