जहन में
बार बार सवाल
उठता है
उनकी नाराजगी को
याद करता रहूँ
मन में दुखी होता रहूँ
निरंतर
ज़ख्म खाता रहूँ
या हादसा समझकर
भूल जाऊं ?
तय नहीं कर पाता हूँ
उन्हें दिल से चाहा है
वो नाराज़ रहे तो भी
भूल कैसे सकता हूँ
917-35-08-12-2012
याद ,मन में
दुखी ,नाराजगी
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